संपूर्ण सिक्ख समाज में बड़े भक्तिभाव, श्रद्धा और भव्यता से मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है पहला प्रकाश उत्सव। इस उत्सव को सिख धर्म में अत्यंत विशेष स्थान प्राप्त है। आइए देखें, इस दिन का इतना महत्व क्यों है और पहला प्रकाश वास्तव में क्या है।
इतिहास की झलक
सिक्ख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी महाराज से लेकर गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी और पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी के साथ ही पंद्रह भक्तों की वाणी, चार गुरसिख और ग्यारह भट्टों के विचारों को एकत्रित कर श्री गुरु अर्जुन देव जी ने एक ग्रंथ तैयार किया जिसे आद ग्रंथ कहा गया। इसमें 31 रागों के अंतर्गत मानवता के कल्याण हेतु लिखी गई वाणी को संग्रहीत किया गया। यह संकलन कुल 1430 अंगों (पन्नों) में हुआ। (गुरु ग्रंथ साहिब को जीवंत गुरु माना जाता है, इसलिए प्रत्येक पन्ने को “अंग” कहा जाता है)।
इस संकलन कार्य के लिए गुरु अर्जुन देव जी ने 1601 से 1604 तक चार वर्षों का समय लिया। भाई गुरदास जी ने इसे सुंदर अक्षरों में लिखकर पूरा किया। इसे आद ग्रंथ अथवा पोथी साहिब के रूप में जाना गया।
1604 में अमृतसर स्थित पवित्र हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) में नगर कीर्तन द्वारा इसे ले जाकर ऊंचे आसन पर सुशोभित कर इस ग्रंथ का प्रथम प्रकाश (प्रकाशन) किया गया। यही दिन सिक्ख जगत में “पहला प्रकाश उत्सव” के नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर बाबा बुढ्ढा जी को पहले ग्रंथी के रूप में नियुक्त किया गया।
बाद में दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी महाराज ने नवें गुरु श्री गुरु तेगबहादुर जी की वाणी भी इसमें शामिल की और 1708 में नांदेड स्थित तख्त श्री हजूर साहिब में देहधारी गुरु परंपरा समाप्त कर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को गुरुपद प्रदान किया। उस समय गुरु महाराज ने आदेश दिया
“सब सिखन को हुकम है गुरु मानियो ग्रंथ।”
पहला प्रकाश उत्सव का महत्व
जो भी सिक्ख पूर्ण श्रद्धा से गुरु ग्रंथ साहिब जी को गुरु मानता है, उसे साक्षात गुरु-दर्शन का लाभ होता है। गुरु महाराज ने स्पष्ट शब्दों में कहा –
“जो प्रभ को मिलबो चाहो खोज शबद में लेहि।”
अर्थ – जो परमात्मा से मिलना चाहता है, उसे गुरु ग्रंथ साहिब जी के शब्द स्वरूप में ही परमेश्वर की खोज करनी चाहिए।
गुरु ग्रंथ साहिब जी में केवल छह गुरुओं की वाणी ही नहीं, बल्कि विभिन्न धर्मों व पंथों के संत-महात्माओं की वाणी को भी आदरपूर्वक स्थान दिया गया है। उस समय के समाज ने जात-पात और भेदभाव के कारण जिन महापुरुषों का अपमान किया, उनकी वाणी को भी इसमें शामिल किया गया।
गुरु ग्रंथ साहिब जी के अध्ययनकर्ता प्रतिदिन नतमस्तक होकर इस वाणी का पाठ करते हैं और एक प्रकार से सभी धर्मों के महापुरुषों के विचारों को नमन करते हैं। इसमें न केवल सिख समाज बल्कि संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए संदेश है।
धर्मगुरुओं को दी गई सीख
गुरु ग्रंथ साहिब जी ने यह स्पष्ट किया है कि किसी भी धार्मिक नेता की असली पहचान उसके कर्मों से होती है।
कुछ उदाहरण –
संन्यासी : “सो संनिआसी जो सतिगुर सेवै विचहु आप गवाए।” (अंग 1013)
पंडित : “सो पंडित जो मन परबोधै, राम नाम आतम महि सोधै।” (अंग 274)
ब्राह्मण : “सो ब्राह्मण जो ब्रह्म बीचारे।” (अंग 662)
बैष्णव : “बैसनो सो जिस उपर सुप्रसन्न।” (अंग 274)
जोगी : “सतिगुरु सेवे सो जोगी होइ।” (अंग 223)
मुसलमान : “मुसलमान मोम दिल होवै।” (अंग 1084)
मुल्ला : “सो मुल्ला जो मन सिउ लरै।” (अंग 1159)
काजी : “सच कमावै सोई काजी।” (अंग 1084)
हाजी : “जो दिल सोधै सोई हाजी।” (अंग 1084)
शेख : “सोई सेखु मसाइक हाजी सो बंदा जिसु नजरि नरा।” (अंग 1084)
मानव कल्याण का संदेश
गुरु ग्रंथ साहिब जी में सहनशीलता, सद्भावना, भाईचारा, एकता, शांति और करुणा की भावना जागृत करने की शिक्षा दी गई है।
भाषा, जात-पात, धर्म और सीमाओं के आधार पर भेदभाव को सख्ती से नकारा गया है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण शिक्षाएं दी गई हैं
तंबाकू और नशे से बचाव।
परस्त्री/परपुरुष संबंधों पर रोक (एड्स जैसी बीमारियों से सुरक्षा हेतु)।
भ्रष्टाचार, अन्याय और अंधविश्वास का विरोध।
सच्चा और ईमानदार जीवन जीने का मार्ग।
सुबह जल्दी उठकर नाम स्मरण करना और अपनी कमाई का कम से कम 10% जरूरतमंदों की सेवा में लगाना।
आडंबर और दिखावे से बचकर मानवता के विकास पर ध्यान।
जात-पात का भेद मिटाकर यह स्पष्ट शिक्षा – “मानस की जात एक है।”
गुरु ग्रंथ साहिब जी में 22 भाषाओं की वाणी को स्थान देकर भाषाई सम्मान और एकता का संदेश भी दिया गया है।
उत्सव का स्वरूप
पहला प्रकाश उत्सव पूरी दुनिया में बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है।
मध्यरात्रि से ही पाठ, पूजा और कीर्तन प्रारंभ हो जाता है।
प्रसाद, लंगर और भजन-कीर्तन चलता रहता है।
गुरुद्वारे फूलों और रंग-बिरंगी रोशनियों से सजाए जाते हैं।
यह उत्सव केवल धार्मिक समारोह नहीं, बल्कि मानवता, समानता और प्रेम का उत्सव है।
विशेषकर नांदेड स्थित तख्त श्री हजूर साहिब में यह उत्सव भव्य स्तर पर मनाया जाता है। यहां विशेष लंगर की व्यवस्था होती है और समाजसेवियों की ओर से विभिन्न व्यंजन, दूध, चाय, कॉफी और मिठाइयों का वितरण किया जाता है। सुबह का दृश्य अत्यंत मनमोहक और अद्वितीय होता है।
इस अवसर पर सभी धर्मों के लोगों को इसमें सम्मिलित होकर इस पवित्र अवसर का लाभ लेना चाहिए।
विशेष तथ्य
कैलिफोर्निया स्थित लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस (जो विश्व की सबसे बड़ी लाइब्रेरी है) में पूरी दुनिया के ग्रंथ और पुस्तकें उनकी योग्यता के अनुसार स्थान पाते हैं। विशेष बात यह है कि वहां श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को सर्वोच्च आसन पर विराजमान किया गया है।
इसका कारण यही है कि गुरु ग्रंथ साहिब जी में न केवल मानव कल्याण की सीख है, बल्कि संपूर्ण विज्ञान का भी सार समाहित है। आज विज्ञान जो-जो नई खोजें कर रहा है, उनमें से अधिकांश पहले से ही गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित हैं।
हम नांदेडवासी वास्तव में भाग्यशाली हैं कि ऐसे श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को यहां गुरुगद्दी प्रदान की गई। ऐसे स्थान पर रहना हमारे लिए गर्व की बात है। इसलिए सभी समाजबंधुओं को चाहिए कि पहला प्रकाश उत्सव श्रद्धा और आनंद से मनाएं और अपने जीवन को सार्थक करें।
निष्कर्ष
पहले प्रकाश उत्सव का मुख्य उद्देश्य केवल इतिहास की याद नहीं, बल्कि हर हृदय में ज्ञान, प्रेम और सत्य का दीप जलाना है। इसलिए इस उत्सव को मना कर सभी को इस अनुभूति से जोड़ना ही इसका वास्तविक उद्देश्य है।
सभी को पहले प्रकाश उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं!
✍️ राजेंद्र सिंघ शाहू
इलेक्ट्रिकल ट्रेनर, नांदेड 7700063999
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